शोषणमुक्त प्रगतिशील समाज का निर्माण हो लक्ष्य – DMS Jamalpur March 21,22, 2009
मुंगेर। आनंद मार्ग के दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन का समापन पुरोधा आनंदमूर्ति जी के इस संदेश के साथ हुआ कि आदमी के लौकिक जीवन का लक्ष्य शोषणमुक्त प्रगतिशील समाज का निर्माण होना चाहिए। हृदय में भक्ति आ जाने पर कुछ और पाने की लालसा नहीं रह जाती है। वरिष्ठ पुरोधा आचार्य विश्वदेवानंद ने उक्त सारगर्भित संदेश दिया। इसके बाद वीडियो फिल्म में गुरु के जीवन दर्शन का सार संक्षेप दिखाया गया। तब दर्शक भावविह्वल हो उठे।
पुरोधा विश्वदेवानंद ने दुनिया के दर्जनों देशों से आये अनुयायियों से कहा कि बाबा के प्रति सम्पूर्ण आत्मसमर्पण ही प्रणिपात है। 1921 से 53 का समय बाबा केजन्म, बाललीला व लौकिक ज्ञानार्जन का, 1954 से 66 तक ब्रज आनंदमूर्ति की भूमिका का रहा। कोमल से कठोरता की ओर बढ़े बिना जीवन में विप्लव नहीं हो सकता। महाविश्व निर्माण के लिए पार्थ सारथी की भूमिका आवश्यक है। अनुयायियों के सम्मेलन में केंद्रीय समिति के अवधूतों ने कहा कि वे आनंद मार्ग के दैव कार्यो को आगे बढ़ाने के लिए नये संन्यासियों को भुक्ति प्रमुख व प्रधान बनाकर संस्था का दायित्व सौंपने में प्रसन्नता अनुभव करेंगे, बशर्ते नये लोग सिस्टम के अनुसार साधना व सेवा-कार्य करें।
इसके बाद आधा दर्जन नये जोड़ों का आदर्श विवाह हुआ। उन्हें संन्यासी पुरोधाओं ने रात्रि में हजारों भक्तों के समक्ष आशीर्वाद दिया। अपराह्न में भक्ति गीतों व बाबा के तैयार किये भजनों का दौर चला। इस अंतराल अहर्निश ‘बाबा नाम केवलम्’ का जाप बाबा की तसवीर के समक्ष होता रहा। फिर सामूहिक साधना की गयी। अंत में गुरुदेव को वीडियो फिल्म के माध्यम से संदेश देते दिखाया गया, तो विछोह की पीड़ा से भक्तों का गला रुंध गया, आंखों से आंसू छलक पड़े।
मुंगेर। आनंद मार्ग के दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन का समापन पुरोधा आनंदमूर्ति जी के इस संदेश के साथ हुआ कि आदमी के लौकिक जीवन का लक्ष्य शोषणमुक्त प्रगतिशील समाज का निर्माण होना चाहिए। हृदय में भक्ति आ जाने पर कुछ और पाने की लालसा नहीं रह जाती है। वरिष्ठ पुरोधा आचार्य विश्वदेवानंद ने उक्त सारगर्भित संदेश दिया। इसके बाद वीडियो फिल्म में गुरु के जीवन दर्शन का सार संक्षेप दिखाया गया। तब दर्शक भावविह्वल हो उठे।
पुरोधा विश्वदेवानंद ने दुनिया के दर्जनों देशों से आये अनुयायियों से कहा कि बाबा के प्रति सम्पूर्ण आत्मसमर्पण ही प्रणिपात है। 1921 से 53 का समय बाबा केजन्म, बाललीला व लौकिक ज्ञानार्जन का, 1954 से 66 तक ब्रज आनंदमूर्ति की भूमिका का रहा। कोमल से कठोरता की ओर बढ़े बिना जीवन में विप्लव नहीं हो सकता। महाविश्व निर्माण के लिए पार्थ सारथी की भूमिका आवश्यक है। अनुयायियों के सम्मेलन में केंद्रीय समिति के अवधूतों ने कहा कि वे आनंद मार्ग के दैव कार्यो को आगे बढ़ाने के लिए नये संन्यासियों को भुक्ति प्रमुख व प्रधान बनाकर संस्था का दायित्व सौंपने में प्रसन्नता अनुभव करेंगे, बशर्ते नये लोग सिस्टम के अनुसार साधना व सेवा-कार्य करें।
इसके बाद आधा दर्जन नये जोड़ों का आदर्श विवाह हुआ। उन्हें संन्यासी पुरोधाओं ने रात्रि में हजारों भक्तों के समक्ष आशीर्वाद दिया। अपराह्न में भक्ति गीतों व बाबा के तैयार किये भजनों का दौर चला। इस अंतराल अहर्निश ‘बाबा नाम केवलम्’ का जाप बाबा की तसवीर के समक्ष होता रहा। फिर सामूहिक साधना की गयी। अंत में गुरुदेव को वीडियो फिल्म के माध्यम से संदेश देते दिखाया गया, तो विछोह की पीड़ा से भक्तों का गला रुंध गया, आंखों से आंसू छलक पड़े।
धर्म महासम्मेलन को सफल बनाने में हजारों अनुयायियों के साथ मण्डप में अवधूतिका आचार्या आनंद संबुद्धा, आनंद कल्याणमयी श्री, आनंद द्योतना, आनंदप्रभा, आनंद नारायणी, आनंद देवश्री सहित सैकड़ों संन्यासिन थीं। आचार्य विश्वदेवानंद, निगमानंद, रुद्रानंद, निर्मोहानंद, लीला बोधानंद, मंत्र चेतनानंद, अचिंतानंद, शरणानंद, सम्पूर्णानंद, निर्मेधानंद, चित्तस्वरूपानंद, अमलेशानंद, मधुव्रतानंद, अभिरामानंद, सत्याश्रयानंद, रवि प्रकाशानंद, नभातितानंद, महितोषानंद, परमानंद, मुकुंदानंद सहित सैकड़ों अवधूत सक्रिय नजर आये। इन लोगों ने हजारों नये नर-नारियों को मंत्र के द्वारा संस्था का सदस्य बनने के लिए दीक्षा दी।
Source – http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_5333685.html